100+ Insaniyat Shayari in Hindi


Embark on a compassionate journey with our heartwarming collection of 100+ Insaniyat Shayari. These verses celebrate the essence of humanity, transcending boundaries and emphasizing the power of kindness and empathy. Each Shayari radiates with the warmth of compassion, reminding us of the importance of being humane in an often tumultuous world. Through poetic expressions, the virtues of love, tolerance, and understanding find a voice, inspiring us to embrace our shared humanity. These verses are a poignant reminder of the need to uplift one another, regardless of differences or hardships. As the words weave together, they create a tapestry of unity and acceptance, where hearts connect beyond superficial barriers.

Insaniyat Shayari

Insaniyat Shayari

आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ खुदा जो,
इंसान का चेहरा नहीं किरदार दिखा दे।

पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया,
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया।

प्यार की चाँदनी में खिलते हैं
दश्त-ए-इंसानियत के फूल हैं हम

आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं,
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद।

ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम।

​​हमारी आरजूओं ने हमें इंसान बना डाला​,
​वरना जब जहां में आये थे बन्दे ​​​थे खुदा के​।​

दिल के मंदिरों में कहीं बंदगी नहीं करते,
पत्थर की इमारतों में खुदा ढूंढ़ते हैं लोग।

मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझमें थी ही नहींl

जिन्हें महसूस इंसानों के रंजो-गम नहीं होते,
वो इंसान भी हरगिज पत्थरों से कम नहीं होते।

फितरत सोच और हालात में फर्क है वरना,
इन्सान कैसा भी हो दिल का बुरा नहीं होता।

चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर,
कौन कहता है मेरे मुल्क में महंगाई बहुत है।l

बहुत हैं सज्दा-गाहें पर दर-ए-जानाँ नहीं मिलता
हज़ारों देवता हैं हर तरफ़ इंसाँ नहीं मिलता।

Insaniyat Shayari

जिस्म की सारी रगें तो स्याह खून से भर गयी हैं,
फक्र से कहते हैं फिर भी हम कि हम इंसान हैं।

हम खुदा थे गर न होता दिल में कोई मुद्दा,
आरजूओं ने हमारी हमको बंदा कर दिया।

इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ,
साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ?

क्या-क्या ग़ुबार उठाए नज़र के फ़साद ने
इंसानियत की लौ कभी मद्धम न हो सकी

देखें करीब से तो भी अच्छा दिखाई दे,
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे।

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं,
मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।

रखते हैं जो औरों के लिए प्यार का जज्बा
वो लोग कभी टूट कर बिखरा नहीं करते

खुदा न बदल सका आदमी को आज भी यारों,
और आदमी ने सैकड़ो खुदा बदल डाले।

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं,
मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।

Insaniyat Shayari

हर आदमी होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना।

बनाया ऐ ‘ज़फ़र’ ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर
मलक को देव को जिन को परी को हूर ओ ग़िल्माँ को

इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ।

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं।

कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है

नई मंज़िल नया जादू उजाला ही उजाला
दूर तक इंसानियत का बोल-बाला

बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है

इल्म-ओ-अदब के सारे खजाने गुजर गए,
क्या खूब थे वो लोग पुराने गुजर गए,
बाकी है बस जमीं पे आदमी की भीड़,
इंसान को मरे हुए तो ज़माने गुजर गए।

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