Javed Akhtar, the renowned poet, lyricist, and screenwriter, possesses a poetic prowess that transcends time and emotions. His Shayari, comprising a collection of over 100 best works, weaves a tapestry of profound thoughts, romance, and social consciousness. Each verse reflects his profound understanding of life, love, and human complexities. Javed Akhtar’s Shayari beautifully captures the essence of emotions, resonating with people from all walks of life. With a poetic finesse that combines eloquence and depth, his verses leave an everlasting impact on the hearts of those who encounter them. Through his literary brilliance, Javed Akhtar continues to be a source of inspiration and admiration for poetry lovers across the globe.
Javed Akhtar Shayari
तमन्ना फिर मचल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था,
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए !
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये गम दिल से निकल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो
कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का
नहीं मिलते हो मुझसे
तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
“इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे”
“हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे”
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया….
जिधर जाते हैं
सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल*
रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी
ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो
सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
तुम फ़ुज़ूल बातों का दिल पे बोझ मत लेना
हम तो ख़ैर कर लेंगे ज़िंदगी बसर तन्हा.!
ये ज़िन्दगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
ग़लत बातों को ख़ामोशी
से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें
मगर अच्छा नहीं लगता।
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान
अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
आगही से मिली है तन्हाई
आ मिरी जान मुझ को धोका दे
खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए’तिबार जाता रहा
है पाश-पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का
बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की
ख़ुशबू तक नहीं आती
ये वो शाखें हैं जिनको
अब शजर अच्छा नहीं लगता।
ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों
पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे
बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है
कम बे-शक पर उन को
मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
ख़ून से सींची है
मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक
सितम-गर ने कहा उस की है
ये दुनिया भर के झगड़े घर
के किस्से काम की बातें,
बला हर एक टल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ.!
एहसान करो तो दुआओं में मेरी मौत मांगना,
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों…
बस इतना ही तो पूछा था-
‘कभी वफा की किसी से’ …
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों*,
ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर,
अच्छा नहीं लगता
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियातू
ने ढाला है और ढले हैं हम
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती !
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
डर हम को भी लगता है
रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर
ऐ दिल अब जाना तो होगा
दुख के जंगल में फिरते हैं
कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं
कैसे हैं बेचारे लोग
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया
जब जब दर्द का बादल छाया, जब ग़म का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया,जब यह तनहा दिल घबराया
हमने दिल को यह समझाया, दिल आखिर तू क्यों रोता है,
दुनिया में यूँ ही होता है.!
“ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए”
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
एक ये दिन जब अपनों ने
भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की
शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
अब अगर आओ तोह जाने के लिए मत आना,
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत
आना मैंने पलकों पे तमन्नाएं सजा रखी हैं!
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी
तुम ये कहते हो
कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई
पहचान ज़रा देख तो लो
दिल में उम्मीद की सौ शम्में जला रखी हैं
ये हसीं शम्में बुझाने के लिए मत आना.!
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
क्यूं मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताओगी