100+Intezaar Shayari in Hindi | इंतजार शायरी इन हिंदी

कभी कभी एक दिन का इंतजार,

सालों जैसा लगता है !!

मिलने का मज़ा अक्सर !

इंतज़ार के बाद ही आता है !!

हालात कह रहे है की अब मुलाक़ात नहीं होगी,

उम्मीद कह रही है जरा इन्तेज़ार कर ले !!

दो तरह के आशिक होते हैं,

एक हासिल करने वाले और दूसरे इंतज़ार करने वाले !

उसके ना की उम्मीद तो नहीं,

फिर भी उसका इंतज़ार किये जा रहे हैं !

वो तारों की तरह रात भर चमकते रहे,

हम चाँद से तन्हा सफ़र करते रहे,

वो तो बीते वक़्त थे उन्हें आना न था,

हम यूँ ही सारी रात करवट बदलते रहे।

जिसका इंतज़ार शिद्दत से करोगे,

वही अक्सर नहीं आते !

इंतज़ार उनके आने का खत्म न हुआ,

हम हर एक आहत में उनको ही ढूंढते हैं !

एक मुलाकात की आस में मैं ज़िंदगी गुजार लूंगा,

तुम हां तो कहो तुम्हारे लिए उम्र भर इंतज़ार करूंगा !

उल्फ़त के मारों से ना पूछो आलम इंतज़ार का,

पतझड़ सी है ज़िन्दगी और ख्याल है बहार का !

मुझको अब तुझ से मोहब्बत नहीं रही,

ऐ ज़िन्दगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही,

बुझ गये अब उसके इंतज़ार के वो दीये,

कहीं आस-पास भी उस की आहट नहीं रही।

किन लफ्जों में लिखूँ मैं अपने इन्तजार को तुम्हें,

बेजुबां है इश्क़ मेरा ढूँढता है खामोशी से तुझे !

झुकी हुई पलकों से उनका दीदार किया,

सब कुछ भुला के उनका इंतजार किया

वो जान ही न पाए जज्बात मेरे,

मैंने सबसे ज्यादा जिन्हें प्यार किया !

आंखों का इंतज़ार तुम पर आकर ही तो खत्म होता है,

फिर चाहे वो हकीकत हो या ख्वाब !

इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,

खामोशियों की अब आदत हो गयी है !

वो न आयेगा हमें मालूम था,

मगर कुछ सोच कर करते रहे इंतज़ार उसका !

फरियाद कर रही है यह तरसी हुई निगाह,

देखे हुए किसी को ज़माना गुजर गया !

पल भर का प्यार और बरसों का इंतज़ार,

जैसे कोई अपना ही अपने घर को लूट रहा है !

संभव ना हो तो साफ मना कर दें,

पर किसी को अपने लिए इंतजार ना करवाएं !

मैं आज भी तेरा इन्तजार कर रहा हूँ,

बस एक बार लौट आओ मेरे पास !

किसी रोज होगी रोशन मेरी भी जिंदगी,

इंतजार सुबह का नहीं तेरे लौट आने का है !

वो न आएगा हमें मालूम था,

कुछ सोच कर इंतजार करते रहे !

हर वक्त तेरा इंतजार रहता है,

तेरे लिए सनम हम बेकरार रहते हैं,

मुझे पता है तू नहीं किस्मत में मेरी,

फिर भी ना जाने क्यों तेरा इंतजार रहता है !

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के

अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के

न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद

मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा

मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का

उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे

कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़

कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी

अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे

वो आ भी जाएँ तो आए न ए’तिबार मुझे

अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ

शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या

तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको

तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है

तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं

शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया

आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ

अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है

मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल

हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है

कमाल-ए-इश्क़ तो देखो वो आ गए लेकिन

वही है शौक़ वही इंतिज़ार बाक़ी है

अब जो पत्थर है आदमी था कभी

इस को कहते हैं इंतिज़ार मियाँ

फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया

फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का

इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी

वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं

अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था

देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था

हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे

तू सामने है और तिरा इंतिज़ार है

ये और बात कि उन को यक़ीं नहीं आया

प कोई बात तो बरसों में हम ने की यारो

हज़ार रंग-ब-दामाँ सही मगर दुनिया

बस एक सिलसिला-ए-एतिबार है, क्या है

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