100+ Zulf Shayari in Hindi


“100+ Zulf Shayari” is an enchanting collection of poetic verses in Urdu and Hindi that celebrate the beauty and allure of luscious locks, known as “Zulf.” These verses paint a mesmerizing portrait of cascading tresses, capturing the essence of romance, dreams, and desires. Each Shayari reflects the magnificence of flowing hair, symbolizing elegance, passion, and the timeless charm of love. The verses traverse through emotions, from tender adoration to longing glances, evoking imagery that transports readers into a world of poetic enchantment. With its rich linguistic expressions and profound emotions, this anthology becomes a tribute to the eternal fascination with Zulf, celebrating the captivating essence of this age-old symbol of allure and admiration.

Zulf Shayari

तेरी जुल्फे इशारो में कह गयी मुझे,
मैं भी शामिल थी तुझे बर्बाद करने में.

जुल्फ खुली रखती हु मै,
दिल बाँधने के लिए।

खोल दे इन काली जुल्फों को ,
बरसात आये हुए भी
एक अरसा सा लगने लगा है !!

कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जाना,
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे।

खुदखुशी करने से
मुझे कोई परहेज नही है,
बस शत॔ इतनी है
कि फंदा तेरी जुल्फों का हो।

बरसी थी काली घटा जब से,
उसके ज़ुल्फ़ की घटा की बादल छाई !!

दिल उसकी तार-ए-ज़ुल्फ़ में उलझ गया,
सुलझेगा किस तरह से ये बिस्तार है ग़ज़ब।

हमारे दिल की हालत
गेसू-ए-महबूब जाने है,
परेशान की परेशानी
को परेशान खूब जाने है।.

रूठ कर तेरी जुल्फों
से चाँद भी सहम गया,
दागदार तो था
ही बादलों में भी छिप गया।

चेहरा तेरा चाँद सा रौशन,
और ज़ुल्फ़ बादलों का साया !!

बिजलिओं ने सीख ली
उनके तबस्सुम की अदा,
रंग जुल्फों का चुरा
लिया घटा बरसात की।

तुझे देखेंगे सितारे तो ज़िया मांगेंगे,
प्यासे तेरी जुल्फों से घटा मांगेंगे.।

यूँ मिलकर सनम तुमसे
रोने को जी चाहता है,
तेरी जुल्फों के साए में
सोने को जी चाहता है।”

ज़ुल्फ़ तेरी एक घनेरी शाम
की बदल है,
जो हर शाम रंगीन कर दे, ऐसी
वो तेरी आँचल है !!

इधर गेसू उधर रु-ए-मुनव्वर है तसव्वुर में,
कहाँ ये शाम आएगी कहाँ ऐसी सहर होगी।

झुकी नज़रें और ज़ुल्फ़ की घटा छाई,
बरसा है सावन और फिर उनकी याद आई !!

कम से कम अपने बाल तो
बाँध लिया करो,
कमबख्त बेवजह मौसम
बदल दिया करते हैं।

तेरी जुल्फों का वो Clip बना जाऊं,
जुल्फों से हटू तो तेरे लबो में दब जाऊं.।

तेरी आगोश में आके,
मैं दुनिया भूल जाता हूँ,
तेरी जुल्फों के साये में,
सुकूँ की नींद पाता हूँ।

जुल्फें तुम्हारी परेशान करती है अक्सर,
उठती है लहरें समंदर की तरह !!

उसके रुख़्सार पर कहाँ है ज़ुल्फ़,
शोला-ए-हुस्न का धुआँ है ज़ुल्फ़।

आंसमा पे सरकता चाँद,
और कुछ रातें थी सुहानी,
तेरी जुल्फों से गुजरती हुई उंगलियाँ,
और तेरी साँसे थी जैसे मीठा पानी।

उन्होंने ज़ुल्फें क्या झटकी अपनी,
सारे शहर में बारिश हो गई!!

बिखरी हुई ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई,
मैं भी शरीक हूँ तेरे हाल-ए-तबाह में।

इतनी आजादी अच्छी नहीं लगती,
आपने अपनी जुल्फ़ों
को बहुत छूट दे रखी है.

हर खुशी माना है ,सनम तेरी
जुल्फों के साये में है, वो मज़ा मगर है
कहाँ, जो दिल के लुट जाने में।
“ज़ुल्फ़ पर शेर”

बहुत चालाकी से तेरे गालों को चूम लेती हैं;
इन ज़ुल्फ़ों को भी तूने सिर पर चढ़ा रखा हैं !!

तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई,
नम आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई।

अंदाजा होता अगर
तुझे मेरी उलझनों का,
तो तू इतने आराम से
अपनी ज़ुल्फें न सुलझा रही होती !!

बड़े गुस्ताख हैं
झुक कर तेरा मुँह चूम लेते हैं,
बहुत सा तू ने
ज़ालिम गेसुओं को सर चड़ाया है।

इतनी ठंडक मिलती है तेरी
ज़ुल्फ़ों के साये में कि,
जी चाहता है की पूरी गर्मी तेरे
ज़ुल्फ़ों के छांव में गुज़ारूं!!

गम-ए-ज़माना तेरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थी,
के बढ़ चले हैं अब इन गेसुओं के भी साए।

देख लेते जो मेरे दिल की परेशानी को,
आप बैठे हुए ज़ुल्फ़ें न सँवारा करते.

तेरी ज़ुल्फ़ क्या संवारी,
मेरी किस्मत निखर गयी,
उलझने तमाम मेरी,
दो लट में संवर गयी।

देख लेते जो आप मेरे
दिल की परेशानी को,
बैठे हुए जुल्फें न संवारा करते।

पहली मुलाक़ात थी और हम दोनों बेबस,
वो ज़ुल्फें सँभालती रही और मै खुद को.

चेहरे पे मेरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन,
क्यों रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन।

रात की मदहोशी को तो जैसे तैसे
संभाला था मैंने,
सुबह उन्होंने ज़ुल्फ़ झटक के फिर से
बेहोश कर दिया !!

तेरे जुल्फों के अंधियारे
में अपना शहर भूल आया,
मैं वही शख्स हूँ
जो तेरे दिल में अपना घर भूल आया।

सबा आती है तो ज़ुल्फें सँवरती है उसकी,
गुलाब से चहरे का मुंह धो जाती है शबनम.

उलझा हूँ
मैं तेरे ज़ुल्फ़ों के साये तले,
सुलझ जाऊंगा मैं
फिर जब तू लगा लेगी मुझे गले !!

हाथ टूटे मैंने गर छेड़ी
हो जुल्फें आप की,
आप के सर की
कसम बाद-ए-सबा थी मैं न था।

तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के साये में शाम कर लूंगा,
सफर इस उम्र का पल में तमाम कर लूंगा।

चाँद से रौशन जैसी तेरे चेहरे
को देख के मैं सुलझ जाऊ,
एक दफ़ा तु लगा ले गले मुझे,
दिल चाहता है की तेरे ज़ुल्फ़ों मे उलझ जाऊ!!

सुन छोरे मैं जु़ल्फें खुली रखती हूं,
तेरा दिल बांधने के लिए.

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