“100+ Ramdhari Singh Dinkar Quotes: Experience the poetic brilliance and profound insights of the renowned Hindi poet. Ramdhari Singh Dinkar’s verses reflect the essence of courage, nationalism, and human values. From evoking a sense of cultural pride to celebrating the spirit of freedom and justice, his quotes leave a lasting impact on readers. Dinkar’s words inspire us to rise above challenges, embrace unity, and strive for a better world. Whether you seek motivation, social awareness, or a deeper connection to literature, these quotes resonate with the core of human emotions. Immerse yourself in the poetic treasure of Dinkar’s words and let his timeless wisdom ignite the flame of positivity and change within you.”
Ramdhari Singh Dinkar Quotes
जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैं उसी प्रकार सभी गुण अंतत: स्वार्थ में विलीन हो जाते है।
इच्छाओं का दामन छोटा मत करो , जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो।
जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है।
दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभ ही होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
मित्रों का अविश्वास करना बुरा है , उनसे छला जाना कम बुरा है।
हमारा धर्म पंडितों की नहीं , संतो और ऋषियों की रचना है।
आजादी रोटी नहीं , मगर दोनों में कोई वैर नहीं। पर कहींं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।
सम्पूर्ण इंसान जाति में भेद नही करता।l
जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैं उसी प्रकार सभी गुण अंतत! स्वार्थ में विलीन हो जाता है।
ईष्या की बड़ी बहन का नाम है निंदा। जो इंसान ईष्यालु होता है, वही बुरा निंदक भी होता है।
अभिनंदन लेने से मना करना , उसे दोबारा मांगने की तैयारी है।
कोई प्रशंसा ऐसी नहीं जो मुझे याद रहें , कोई निंदा ऐसी नहीं जो मुझे उभार दे।बनास्ति का परिणाम नास्ति है।
जब खुलकर लोग तुम्हारी निंदा करने लगे तब तुम समझो कि तुम्हारी लेखनी सफल हुई।
सुयश के पीछे नहीं दौड़ना , धन के पीछे नहीं दौड़ना जो मिला सो मेरा , जो नहीं मिला वह किसी अधिकारी मानव – बंधु का है।
जिस इंसान के ह्रदय में भावना न हो , जिसे अपने देश से प्रेम नहीं , उसका ह्रदय ह्रदय नहीं पत्थर है।
स्वार्थ हर तरह की भाषा बोल सकता है . हर तरह की भूमिका अदा कर सकता है .यहां तक की यह नि: स्वार्थ की भाषा भी नहीं छोड़ता।
ऐसा कोई काम नहीं करना जिसे छिपाने की आवश्यकता हो , ऐसा कोई राज नहीं जानना जिसकी जानकारी से कोई जवाब देही आती हो।
हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं है। हाँ यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है।
जब गुनाह हमारा त्याग कर देता है, हम फ़क्र से कहते हैं हमने गुनाहों को छोड़ दिया।
स्वार्थ हर तरह की भाषा बोलता है , हर तरह की भुमिका अदा करता है, यहां तक कि नि:स्वार्थ की भाषा भी नहीं छोड़ता।
कवि पर फूल बरसाये जाएं , तो संभव है उनकी खुशबू उसी समय नष्ट हो जाए।
सूर्यास्त होने तक मत रुको। चीजे तुम्हें त्यागने लगें , उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो।
सदा चिंताशील व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता।
लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है। वे हमारी निंदा करें , यह कम बुरा है।
रोटी के बाद मनुष्य की सबसे बड़ी कीमती चीज उसकी संस्कृति होती है।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं है।
हाँ, यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है।
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी!
लाशों पर चढ़ कर आगे फ़ौज बढ़ेगी!
कोई प्रशंसा ऐसी नहीं जो मुझे याद रहे,
कोई निंदा ऐसी नहीं जो मुझे उभार दे।
नास्ति का परिणाम नास्ति है।
वैभव विलास की चाह नहीं,
अपनी कोई परवाह नहीं।
सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से श्रमजल से।
पुरुष चूमते तब
जब वे सुख में होते हैं,
नारी चूमती उन्हें
जब वे दुख में होते हैं।
और, वीर जो किसी प्रतिज्ञा पर आकर अड़ता है,
सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है।
कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर
मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है।
पूछो मेरी जाति,शक्ति हो तो,मेरे भुजबल से,
रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से,
पढ़ो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
वाणी का वर्चस्व रजत है,
किंतु, मौन कंचन है।
तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे
जब नारी किसी नर से कहे,
प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ,
तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर,
प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।