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Nasha Shayari
मुझे शराब पिलाई गई है आँखों से
मेरा नशा तो हज़ारों बरस में उतरेगा
ये जो मैं होश में रहता नहीं तुमसे मिल कर
ये मिरा इश्क़ है तुम इसको नशा मत समझो
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना हैजिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना हैमौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ कि मर जाना हैनश्शा ऐसा था कि मय-ख़ाने को दुनिया समझा
होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना हैमिरे जज़्बे की बड़ी क़द्र है लोगों में मगर
मेरे जज़्बे को मिरे साथ ही मर जाना है
कहानी ख़त्म हुई तब मुझे ख़याल आया
तेरे सिवा भी तो किरदार थे कहानी में
जीना कहते हैं जिसे है तमाशा करना
जैसे नशे में हो फिर से नशा करनाl
डूब जाते हैं उन्ही के आंख में हम
इस गली में कोई मै-खाना नही है।
वो नशा है के ज़बाँ अक़्ल से करती है फ़रेब
तू मिरी बात के मफ़्हूम पे जाता है कहाँ
ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के बाद
आप आए तो मगर तूफ़ाँ गुज़र जाने के बादचाँद का दुख बाँटने निकले हैं अब अहल-ए-वफ़ा
रौशनी का सारा शीराज़ा बिखर जाने के बादहोश क्या आया मुसलसल जल रहा हूँ हिज्र में
इक सुनहरी रात का नश्शा उतर जाने के बादज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा
ज़िंदगी में क्या बचेगा ज़ख़्म भर जाने के बादशाम होते ही चराग़ों से तुम्हारी गुफ़्तुगू
हम बहुत मसरूफ़ हो जाते हैं घर जाने के बादज़िंदगी के नाम पर हम उमर भर जीते रहे
ज़िंदगी को हम ने पाया भी तो मर जाने के बादl
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
प्यार मुहब्बत बाद की बातें जान कभी ये सोचा है
किसने तेरा साथ दिया था कौन नशे में ख़त्म हुआ
अपने होने का सुबूत और निशाँ छोड़ती है
रास्ता कोई नदी यूँ ही कहाँ छोड़ती हैनशे में डूबे कोई, कोई जिए, कोई मरे
तीर क्या क्या तेरी आँखों की कमाँ छोड़ती हैबंद आँखों को नज़र आती है जाग उठती है
रौशनी ऐसी हर आवाज़-ए-अज़ाँ छोड़ती हैखुद भी खो जाती है, मिट जाती है, मर जाती है
जब कोई क़ौम कभी अपनी ज़बाँ छोड़ती हैआत्मा नाम ही रखती है न मज़हब कोई
वो तो मरती भी नहीं सिर्फ़ मकाँ छोड़ती हैएक दिन सब को चुकाना है अनासिर का हिसाब
ज़िन्दगी छोड़ भी दे मौत कहाँ छोड़ती हैज़ब्त-ए-ग़म खेल नहीं है अब कैसे समझाऊँ
देखना मेरी चिता कितना धुआँ छोड़ती है
शायद शराब पीके तुम्हें फ़ोन मैं करूँ
बस इसलिए शराब कभी पी नहीं मैंने
होश में रहे कैसे इश्क़ का नशा करके
होश जो हमें आए फिर नशा बुलाता है
किसी लड़की को इतना चाहना मत
भुलाने को उसे मदिरा पिओ तुम
एक ‘ज़ौन’ का नशा जो उतरता ही नही
ऊपर से तेरी याद ज़हन से नही जाती
मुहब्बत, इश्क़, ये सब अब कहाँ होता है, बोतल दो
नशा करके, जहाँ मेरा, जहाँ लगता है, बोतल दोनहीं पीता अकेले मैं, बहुत हैं प्यार के मारे
मिरे जैसा शराबी वो, वहाँ रहता है, बोतल दो
इश्क़ में पूछो न क्या होता है
जान ए मन चहरे नशा होते हैं
इक दफ़ा देखी थी तेरी आँखें
आज तक मैं नशे में रहता हूँ
हो गए बेहोश बेख़ुद और बेसुध इश्क़ में
इस से ज़्यादा क्या डुबोयेगी हमें ये मयकशी
कल नशा था मुझे मुहब्बत का
अब नशे से मुझे मुहब्बत है
अश्क पीने में जो नशा है जनाब!
वो पुरानी शराब में भी नहीं
बहुत आसान रखते हैं मुहब्बत को नए मजनूँ
नसों को काट लेते हैं नशों में डूब जाते हैं
नश्शा जब तक उतर नहीं जाता
लौट कर कोई घर नहीं जाता
चारागर भी उसका क्या ईलाज करे
जिसको खाली तेरा नश्शा होता हैउसका तन ले जाए चाहे कोई भी
मेरा रूह पे सीधा क़ब्ज़ा होता है
होते हैं ज़माने पे अयां और तरह के
दिल पर हैं मोहब्बत के निशां और तरह केदुनिया को समझ रक्खा था कुछ और ही हमने
होते हैं तजुर्बे तो यहाँ और तरह केदुनिया कि शराब और है जन्नत कि शराब और
नश्शे हैं यहाँ और वहां और तरह के
नशा जो चीज़ है माना सही नईं है
मगर इस के बिना भी ज़िन्दगी नईं हैकि जिन वजहों से यारो जी रहे हैं हम
हमारी ज़िंदगी मे बस वही नईं हैरहेगी मरने के ये बाद भी ज़िन्दा
मोहब्बत रूह की है जिस्म की नईं हैकि मैं सब का हूँ दुनिया मे मियाँ लेकिन
मेरा इस दुनिया मे अपना को’ई नईंं हैख़ुदा तौफ़ीक़ दे उसको मंहब्बत की
उसे नफ़रत की कोई भी कमी नईं हैबनोगे गर जो हीरो जाँ से जाओगे
महीना ये दिसम्बर है मई नईं है
हज़ार दर्द शब-ए-आरज़ू की राह में है
कोई ठिकाना बताओ कि क़ाफ़िला उतरे
क़रीब और भी आओ कि शौक़-ए-दीद मिटे
शराब और पिलाओ कि कुछ नशा उतरे
दिल ओ निगाह पे क्यु छा रहा है ऐ साकी
तेरी आँख का नशा शराब से पहले…
ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
किसी की आँख में मस्ती तो आज भी है वही
मगर कभी जो हमें था ख़ुमार, जाता रहा
बड़ी लज़्ज़तें हैं गुनाह में जो न कीजिए
जो न पीजिए तो अजब नशा है शराब में
मय को मेरे सुरूर से हासिल सुरूर था
मैं था नशे में चूर नशा मुझ में चूर था
भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला
निगाहों में ख़ुमार आता हुआ महसूस होता है
तसव्वुर जाम छलकाता हुआ महसूस होता है
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अंगड़ाइयों के साथ कहीं दम निकल न जाए
आसाँ नहीं है रंज उठाना ख़ुमार का