100+ Mehfil-e-Shayari

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Mehfil-e-Shayari

दूर रहता हूँ उन महफिलों से मैं जहाँ मेरा खुश रहना उन्हें दुखी कर जाता है।

तुम्हारा जिक्र हुआ तो महफ़िल छोड़ आये गैरों के लबों पे तुम्हारा नाम अच्छा नहीं लगता।

मत बुलाया करो अपनी महफिलों में हमे तालियां रूठ जाती है हमारे आने से।

महफ़िलें उनकी बातें हमारी, बस कुछ ऐसी ही है शख्सीयत हमारी।

 क्या कहें चुप रहना ही जवाब बेहतर है, तेरी आदत से अच्छा तलब इस शराब की बेहतर है।

महफ़िल में शरीक हुए मगर सबके साथ बैठ कर भी कहीं ना कहीं अकेले ही खड़े थे।

महफिलों में ग़मों का इज़हार मत करना, दिलासा नहीं मज़ाकों का तमाचा मिलेगा।

आसान है अकेले में इज़हार करना, मुश्किल है जनाब अपनी चाहत को महफिलों में प्यार करना।

हसीनाएं हज़ार थी महफ़िल में मगर दिल और नज़र बस तुझ पर रुक गए।

तुम्हारा जिक्र हुआ तो महफ़िल छोड़ आये, गैरों के लबों पे तुम्हारा नाम अच्छा नहीं लगता।

महफ़िल में सब थे पर कोई नहीं था, रौनक ही नहीं थी जो तू ही नहीं था।

ये महफ़िल है इसका दस्तूर यही है जनाब यहाँ सब होते है पर कोई किसी का नहीं होता।

बेइज़्ज़त ना किया करो महफ़िल में बुला कर मुझे, या तो नज़र मत आया करो या फिर नज़र अंदाज़ मत किया करो।

फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में, लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में।

अगर देखनी है कयामत तो चले आओ हमारी महफिल मे, सुना है आज की महफिल मे वो बेनकाब आ रहे है।

चेहरे पर मुस्कराहट का नकाब लगा कर, रोता हूँ अकेले में महफ़िल में सभी को खुद को ठीक बता कर।

यूँ भरी महफ़िल में तनहा कैसे, यूँ संवर कर बैठे हुए भी तबाह कैसे।

दुश्मन को कैसे खराब कह दूं ,जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है।

यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते, फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में।

जहाँ महफ़िल भर गई सारे जहाँ के लोगों से, वही मेरा जहाँ ना जाने कहाँ रह गया था।

ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे।

उनसे बिछड़े तो मालूम हुआ मौत क्या चीज है, ज़िन्दगी वो थी जो हम उनकी महफ़िल में गुजार आए।

बस एक चेहरे ने तनहा कर दिया हमे वरना, हम खुद में एक महफ़िल हुआ करते थे।

जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे, तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे।

सजती रहे खुशियों की महफ़िल, हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे।

तू जरा हाथ मेरा थाम के देख तो सही, लोग जल जायेगें महफ़िल मे, चिरागो की तरह।

मुझे गरीब समझ कर महफिल से निकाल दिया, क्या चाँद की महफिल मे सितारे नही होते।

शरीक-ए-बज़्म होकर यूँ उचटकर बैठना तेरा, खटकती है तेरी मौजूदगी में भी कमी अपनी।

नींद भी नीलाम हो जाती हैं दिलों की महफ़िल में जनाब, किसी को भूल कर सो जाना इतना आसान नहीं होता।

इनमे लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल, महफ़िल के कुछ चिराग फ़रोज़ां हुए हैं।

कमाल करते हैं
हमसे जलन रखने वाले,
महफ़िलें खुद की सजाते हैं
और चर्चे हमारे करते हैं।

मेरे लफ़्ज़ों को
महफूज कर लो दोस्तों.
हमारे बाद बहुत सन्नाटा होगा,
इस महफ़िल में.|


दूर रहता हूँ उन महफिलों से मैं जहाँ
मेरा खुश रहना उन्हें दुखी कर जाता है।

उस अजनबी से हाथ
मिलाने के वास्ते
महफ़िल में सब से हाथ
मिलाना पड़ा मुझे.l

इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न शिकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है।

इतनी चाहत से न देखा कीजिए
महफ़िल में आप
शहर वालों से
हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी.

ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिए रंगे-महफ़िल
सबको मदहोश करे, होश से जाए ख़ुद भी

सजती रहे खुशियों की महफ़िल,
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे,
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि,
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
निदा फ़ाज़ली

भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं.

मत बुलाया करो अपनी महफिलों में
हमे तालियां रूठ जाती है
हमारे आने से।

मुझ तक उस महफ़िल में
फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है
शबाब आने को है.
फ़ानी बदायुनी

महफ़िलें उनकी बातें हमारी,
बस कुछ ऐसी ही है
शख्सीयत हमारी।

जिक्र उस का ही
सही बज़्म में बैठे हो फ़राज़,
दर्द कैसा भी उठे
हाथ न दिल पर रखना।

क्या कहें चुप रहना ही जवाब बेहतर है,
तेरी आदत से अच्छा तलब
इस शराब की बेहतर है।

फिर नजर में फूल महके
दिल में फिर शमा जली,
फिर तसव्वुर ने लिया
उस बज़्म में जाने का नाम।

मैंने आंसू को समझाया,
भरी महफ़िल में ना आया करो,
आंसू बोला,
तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है,
इसीलिए तो चुपके से चले आते है.

महफ़िल में शरीक हुए मगर सबके
साथ बैठ कर भी कहीं ना
कहीं अकेले ही खड़े थे।

उठ कर तो आ गया है
तेरी बज्म से मगर,
कुछ दिल ही जनता है
कि किस दिल से आये हैं।

महफ़िल पर नज़र सभी की टिकी हुई थी,
तू जब तक थी रौनक तभी तक थी।

तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है,
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है.

देख ले जान-ए-वफ़ा आज तेरी महफ़िल में,
एक मुजरिम की तरह अहल-ए-वफ़ा बैठे हैं.
– शाद

महफिलों में ग़मों का इज़हार मत करना,
दिलासा नहीं मज़ाकों का तमाचा मिलेगा।

गम ना कर ज़िंदगी बहुत बड़ी है,
चाहत की महफ़िल तेरे लिए सजी है,
बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख,
तक़दीर खुद तुझसे मिलने बाहर खड़ी है.

आसान है अकेले में इज़हार करना,
मुश्किल है जनाब अपनी चाहत
को महफिलों में प्यार करना।

इनमे लहू जला हो
हमारा कि जान ओ दिल,
महफ़िल के कुछ चिराग फ़रोज़ां हुए हैं।

महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है,
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है,
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे,
आज-कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है.

हसीनाएं हज़ार थी
महफ़िल में मगर दिल
और नज़र बस तुझ पर रुक गए।

देखी जो नब्ज़ मेरी तो
हंस कर बोला हकीम,
के तेरे मर्ज का इलाज़
महफ़िल है दोस्तों की

तुम्हारा जिक्र हुआ तो
महफ़िल छोड़ आये,
गैरों के लबों पे तुम्हारा
नाम अच्छा नहीं लगता।

कोई बेताब कोई मस्त कोई चुप कोई हैरान,
तेरी महफ़िल में इक तमाशा है जिधर देखो।

शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना,
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है

दुश्मन को कैसे खराब कह दूं,
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है.

महफ़िल में सब थे पर कोई नहीं था,
रौनक ही नहीं थी जो तू ही नहीं था।

आये भी लोग गए भी उठ भी खड़े हुए,
मैं जा ही देखता तेरी महफ़िल में रह गया।

सहारे ढुंढ़ने की आदत नही हमारी,
हम अकेले पूरी महफ़िल के बराबर है.

ये महफ़िल है इसका दस्तूर यही है
जनाब यहाँ सब होते है
पर कोई किसी का नहीं होता।

अगर देखनी है कयामत तो
चले आओ हमारी महफिल मे. .
सुना है आज की
महफिल मे वो बेनकाब आ रहे हैँ

मुझे गरीब समझ कर
महफिल से निकाल दिया,
क्या चाँद की महफिल
मे सितारे नही होते.

बेइज़्ज़त ना किया करो
महफ़िल में बुला कर मुझे,
या तो नज़र मत आया करो या
फिर नज़र अंदाज़ मत किया करो।

यूँ तो राज़ खुल ही जायेगा
एक दिन हमारी मोहब्बत का,
महफ़िल में जो हमको छोड़
कर सबको सलाम करते हो।

फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल
न पूछिए “मजरूह”
शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने
मजरूह सुल्तानपुरी

इश्क़ का दर्द पलता हो जिस दिल में,
चर्चा उसकी होती है हर महफ़िल में.

फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी
महफ़िल में, लौटते वक्त
दिल नहीं पाओगे अपने सीने में।

तुम बताओ तो मुझे किस बात की सजा देते हो
मंदिर में आरती और महफ़िल में शमां कहते हो
मेरी किस्मत में भी क्या है लोगो जरा देख लो
,तुम या तो मुझे बुझा देते हो या फिर जला देते हो

महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं.
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं.

ये न जाने थे
की उस महफ़िल में दिल रह जायेगा,
समझे थे कि चले
आयेंगे दम भर देख कर।

सम्भलकर जाना हसीनों की महफ़िल में,
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में.

चेहरे पर मुस्कराहट का नकाब लगा कर,
रोता हूँ अकेले में महफ़िल में
सभी को खुद को ठीक बता कर।

मेरी आवाज़ को महफूज
कर लो,मेरे दोस्तों,
मेरे बाद बहुत सन्नाटा होगा
तुम्हारी महफ़िल में.

वो शमा की महफ़िल ही क्या,
जिसमें दिल खाक न हो,
मज़ा तो तब है चाहत का जब,
दिल तो जले पर राख न हो.

यूँ भरी महफ़िल में तनहा कैसे,
यूँ संवर कर बैठे हुए भी तबाह कैसे।

दुश्मन को कैसे खराब कह दूं ,
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है.

बने हुए हैं वो महफ़िल में सूरत-ए-तस्वीर,
हर एक को यूँ गुमा है की इधर को देखते हैं.

उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की
मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़
ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी
महफ़िल में गुज़ार आए.

तू जरा हाथ मेरा थाम
के देख तो सही,
लोग जल जायेगें महफ़िल मे,
चिरागो की तरह.

कल लगी थी शहर में बद्दुआओं की महफ़िल
मेरी बरी आई तो मैंने कहा
इसे भी इश्क़ हो इसे भी इश्क़ इसे भी इश्क़ हो

जहाँ महफ़िल भर गई
सारे जहाँ के लोगों से,
वही मेरा जहाँ ना जाने
कहाँ रह गया था।

कल लगी थी शहर में बद्दुआओं की महफ़िल
मेरी बारी आई तो मैंने कहा
इसे भी इश्क़ हो इसे भी इश्क़ इसे भी इश्क़ हो.

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़,
लोग क्या सादा हैं
सूरज को दिखाते हैं चिराग़. – अहमद फ़राज़

कोई बेसबब, कोई बेताब,
कोई चुप, कोई हैरान है,
ऐ जिंदगी, तेरी महफ़िल
के तमाशे ख़त्म नहीं होते.

पीते थे शराब हम
उसने छुड़ाई अपनी कसम देकर
महफ़िल में गए थे हम
यारों ने पिलाई उसकी कसम देकर

महफ़िल में गले मिल के
वो धीरे से कह गए,
ये दुनिया की रस्म है
इसे मोहब्बत ना समझ लेना.

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