“100+ Masumiyat Shayari: Discover the innocence and purity of emotions through this tender collection of shayaris. Masumiyat, or innocence, is a treasure of heartfelt feelings, untainted by worldly complexities. These verses beautifully capture the essence of simplicity, love, and unadulterated emotions. Each shayari unravels the beauty of innocence found in relationships, memories, and the little joys of life. Delve into the world of innocence and relish the charm of these poetic expressions. Let the Masumiyat Shayari evoke cherished memories, warm your heart, and remind you of life’s precious moments unspoiled by time. Embrace the purity of feelings and immerse yourself in the serenity of these soulful words.”
Masumiyat Shayari
क्या बयान करें तेरी मासूमियत को शायरी में हम,
तू लाख गुनाह कर ले सजा तुझको नहीं मिलनी।
बेवफा तेरा मासूम चेहरा
भूल जाने के काबिल नही।
है मगर तू बहुत खूबसूरत
पर दिल लगाने के काबिल नही !
उसकी सादगी और उसकी खूबसूरती की क्या दूँ मिसाल,
चेहरे पर मासूमियत और अदाएं उसकी है बड़ी बेमिसाल..!!
दुनिया में कोई भी इंसान सख़्त दिल पैदा नही होता…
बस ये दुनिया वाले उसकी मासूमियत छीन लेते है…!!
मासूम तेरी आँखों में मेरा दिल खो जाता है,
जब जब तुझे देख लू मेरा जीवन मुकम्मल हो जाता है,
न आए तू जो मुझको नज़र तेरे दीदार के लिए
मेरा दिल तरस जाता है।
मुकद्दर की लिखावट का इक ऐसा भी कायदा हो,
देर से क़िस्मत खुलने वालों का दुगुना फ़ायदा हो।
मासूमियत तुझमे है पर तू इतना मासूम भी नहीं,
की मैं तेरे कब्जे में हूँ और तुझे मालूम भी नहीं..
लिख दूं किताबें तेरी मासूमियत पर फिर डर लगता है,
कहीं हर कोई तेरा तलबगार ना हो जाये।
आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए,
सिर्फ उसकी एक नजर से ही घायल हो गए।
मासूमियत की कोई उम्र नहीं होती…
वो हर उम्र में आपके साथ रहती है…!!
दम तोड़ जाती है हर शिकायत, लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है, मैंने क्या किया है
कितना मासूम था उनका बात करने का लहज़ा,
धीरे से जान कह के… बेजान कर दिया ……!
बादलों में जो छिप जाता है वो चाँद,
मैंने रोज़ उसे तुम्हारे दुपट्टे को सजाते देखा है।
कितनी मासूमियत छलक आती है
जब छोटे बच्चे की तरह वो मेरी
उंगलियो के साथ खेलते खेलते सो जाती है
क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे।
मुहब्बत होंठों से नहीं, उनसे निकली मीठी बातों से है..
क्यों कि मासूमियत चेहरे से कहीं ज्यादा, उसकी भोली आँखों…
इश्क़ की गुंजाइश नही रही अब
दिल बेताब सा हो गया
परिंदो सी थी मासूमियत
न जाने कैसे कांच सा हो गया ।
शाम की लाली तेरी
रंगत की याद दिलाती है,
तेरी मासूमियत ही मुझे
तेरी ओर खींच लाती है !!
मेरी मासूमियत मुझसे चुरा गया,
कोई इस तरह मोहब्बत मुझसे निभा गया।
न जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर..
तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर देखना अच्छा लगता है..
दम तोड़ देतीं है हर शिकायत लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है मैंने किया क्या है?
न जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर
तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर देखना अच्छा लगता
धोखा देती है अक्सर मासूम चेहरे की चमक,
हर काँच के टुकड़े को हीरा नहीं कहते।
कुछ इस तरह तुम्हे खुदको आज़माते देखा है,
मेरी मौजूदगी में तुम्हे पलके झुकाये देखा है।
और ना जाने क्या-क्या लुट गया,
इश्क.. एक तेरे चक्कर में,
एक मासूमियत ही थी तो वो भी जाती रही।
मासूमियत तुझमे है पर तू इतना मासूम भी नहीं,
की मैं तेरे कब्जे में हूँ और तुझे मालूम भी नहीं..
तेरा मासूम चेहरा मुझे कुछ इस तरह पिघलाता है,
न चाहकर भी तेरी हर गलती माफ़ करवाता है।।
अभी खोए हुएँ हैं जनाब, ख़्वाबों की दुनिया में…
उठते ही कहेंगे “सुनो, तुमने जगाया क्यूँ नहीं”..❤️
फरेबी भी हूँ, ज़िद्दी भी हूँ और पत्थर दिल भी हूँ,
मासूमियत खो दी है मैंने वफ़ा करते-करते !!
तैरती कागज़ की कश्ती,
रोता आसमाँ देखो ये मासूमियत की कैसी अदावत है!!
माना मुसीबत का बाजार है,
तूझे तोड़ने वाले लोग हजार है,
सब सामना करना तूझे ही है,
लेकीन अपनी मासुमीयत बचा रखना…
तेरे चेहरे पे, ये मासूमियत भी खूब जमती है..
क़यामत आ ही जाएगी ज़रा-सा मुस्कुराने से..
झूठ भी बोलते हैं वो कितनी मासूमियत से,
जानकर भी अंजान बनने को जी चाहता है!
जब से फैला है ज़माने में रिश्वत का रोग,
अरबो मे बिकने लगे है दो कोडी के लोग !!
वो जान ही ना पायेगा कभी कितना मैं उसको चाहती हूॅ..
उसका मासूम चेहरा देखकर अपना हर जख्म भूल जाती हूॅ..
उनके हर एक लम्हे कि हिफाजत करना ए खुदा
मासूम चेहरा है उदास अच्छा नहीं लगता…
तेरा चेहरा आज भी मासूम है,
आज भी मेरी चाहत में वही सुकून है,
तेरे चेहरे पे एक मुस्कान के लिए,
जान भी बार दे ऐसा मेरा जूनून है।
गुस्सा इतना कि पूछो मत…
ओर मासूमियत ऐसी, की कभी देखी नहीं..
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
दम तोड़ जाती है हर शिकायत लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है मैंने किया ही क्या है ?
Uski मासूमियत pr Hum फ़िदा ho gye..
Uski मोहब्बत me Wo तबाह ho gye…
ये मासूमियत का कौन सा अन्दाज़ है,
पर काट कर कह दिया कि,अब तुम आजाद हो।
बुरा और भला पहचानने में मासूमियत खो गई
जब वो मतलबी इंसान जाग गया, तो इंसानियत सो गई
जाने कहाँ मासूमियत खो गई…