100+ Harivansh Rai Bachchan Shayari in Hindi


Harivansh Rai Bachchan, a luminary in Hindi literature, enriched the poetic world with his profound and enchanting “shayari” (poetry). His eloquent verses, infused with deep emotions, philosophical insights, and a poetic rhythm, captured the hearts of millions. The timeless appeal of his “shayari” lies in its ability to resonate with people across generations, evoking a myriad of feelings and contemplations. Iconic works like “Madhushala” and “Agneepath” exemplify his mastery of words, creating an enduring impact on readers and listeners alike. Bachchan’s “shayari” continues to inspire and leave a lasting impression on the tapestry of Indian literary heritage.

Harivansh Rai Bachchan Shayari

“कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोंगे बिखर जाओंगे,
जीना हैं तो पत्थर बन के जियो,
किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओंगे।

मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों में दो तार लिए फिरता हूँ.

“उतर नशा जब उसका जाता,
आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी,
बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला;
जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते;
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला”

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ.

मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता,
शत्रु मेरा बन गया हैं छल रहित व्यवहार मेरा|

“तू न थकेंगा कभी, तू न थमेंगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ कर शपथ कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ, अग्निपथ”

गिरना भी अच्छा है औकात का पता चलता है,
बढ़ते है जब हाथ उठाने को, अपनी का पता चलता है,
जिन्हें घुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते है,
मैंने झूठो को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है,
सीख रहा हूँ मैं भी अब इंसानों को पढने का हुनर,
सुना है चेहरे पे किताबो से ज्यादा लिखा होता है।

आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हूँ,
दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ.।

प्यार किसी को करना, लेकिन कहकर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर औरों को अपनाना क्या|

“चाहे जितना तू पी प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन भेद बताती हूँ अंतिम,
यह शांत नहीं होगी ज्वाला,
मैं मधुशाला की मधुबाला!”

नफरत का असर देखो,
जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया,
मंदिरों में हिन्दू देखे, मस्जिद में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया, तब दिखे इंसान।

मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ.

बैठ जाता हूँ, मिट्टी पर अक्सर,
क्योंकि मुझे मेरी औकात अच्छी लगती हैं,
मैंने समन्दर से सीखा हैं, जीने का सलीका,
चुपचाप से रहना और मौज में रहना…….

इस पार प्रिय मधु तुम हो,
उस पार ना जाने क्या होगा,
यह चाँद उदित होकर नभ में,
कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरा लहरा यह सखाए,
कुछ शोक भुला देती मन का।

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ,
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों में मस्त बहा करता हूँ.

चाहे जितना पी तू प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन भेद बताती है अंतिम,
यह शांत नहीं होगी ज्वाला,
मैं मधुशाला की मधुबाला।

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रूलाती भीतर
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ.

तू ना थकेगा कभी ना थमेगा कभी,
तू ना मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ,
अग्रिपथ, अग्रिपथ, अग्रिपथ।

असफलता एक चुनौती हैं,
स्वीकार करो क्या कमी रह गयी,
देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो,
नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय जय कर नहीं होती
कोशिश करनेवालों की हर नहीं होती.

एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला;
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला.

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूमे, झुके, लहराए ,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ.

जो बीत गयी सो बात गयी,
जीवन एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन् को देखो.
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छुट गए फिर कहा मिले,
पर बोले टूटे तारों पर,
कब अम्बर शोक मनाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ.

नफरत का असर देखो, जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया,
मंदिरों में हिन्दू देखे, मस्जिद में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया, तब दिखे इंसान।

जो भरा नहीं भव से
बहती जिसमे रश्दार नहीं,
वो हृदय नहीं पत्थर है,
जिस्मी स्वदेश का प्यार नहीं।

एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला..!!

उतर नशा जब उसका जाता…आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी…बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला;
जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते;
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला

चाहे जितना तू पी प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन भेद बताती हूँ अंतिम…यह शांत नहीं होगी ज्वाला,
मैं मधुशाला की मधुबाला!

कभी फूलो की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे बिखर जाओगे,
जीना है तो पत्थर बन कर जिओ,
किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओगे।

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ..!!

सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर,
पर, साक़ी आता, बन ठनकर,
पीनेवाला शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से,
चिर-विधवा है मस्जिद तेरी, सदा-सुहागिन मधुशाला..!!

तू न थकेंगा कभी, तू न थमेंगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ कर शपथ कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ, अग्निपथ.!!

एक अजीब सी दौड़ है ये जिन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते है,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते है..!!

बीता अवसर क्या आएगा,
मन जीवन भर पछताएंगा,
मरना तो होगा ही मुझको जब मरना था तब मर सका,
मै जीवन मे कुछ न कर सका..!!

आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हु,
दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ..!!

जग के विस्तृत अंधकार मे जीवन के शत–शत विचार मे,
हमे छोड़कर चली गई लो दिन की मौन संगिनी,
छाया साथी अन्त दिवस का आया..!!

बैठ जाता हूँ, मिट्टी पर अक्सर,
क्योंकि मुझे मेरी औकात अच्छी लगती हैं,
मैंने समन्दर से सीखा हैं जीने का सलीका,
चुपचाप से रहना और मौज में रहना..!!

प्यार किसी को करना,
लेकिन कहकर उसे बताना क्या..?
अपने को अर्पण करना पर,
औरो को अपनाना क्या..!!

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते…
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ , लापरवाह हूँ , फिर भी सबकी परवाह करता हूँ…
चाहता हूँ कि ये दुनिया को बदल दू , पर दो वक्त की रोटी की जुगाड़ से फुर्सत नही मिलती..!!

हो जाए न पथ मे रात कही,
मंजिल भी तो है दूर नही,
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी जल्दी चलता है,
दिन जल्दी – जल्दी ढलता है..!!

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूमे, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ..!!

असफलता एक चुनौती हैं, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो,
तुम संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो,
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करनेवालों की हर नहीं होती।

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