Doorie Shayari, also known as shayari on separation, is a poignant and emotional form of Urdu poetry that beautifully captures the pain and longing experienced when two hearts are separated by distance, time, or circumstances. It delves into the complex emotions of missing someone deeply, yearning for their presence, and grappling with the emptiness left behind in their absence.
The theme of doorie shayari has been an integral part of the rich tradition of Urdu poetry for centuries. Urdu poets have eloquently expressed the anguish of separation, often drawing inspiration from personal experiences, unrequited love, or historical events. This profound form of poetry found its way into Indian culture and Bollywood, becoming an inseparable part of lyrical expressions in films.
Doorie Shayari
ये दूरी हमसे अब और सही नहीं जाती,
बस तेरे पास आने को मेरा जी चाहता है,
तोड़ कर सारी दुनिया कि रस्मो-रिवाजों को,
तुझे अपना बनाने को जी चाहता है।
तेरे वजूद की खुशबू बसी है मेरी साँसों में,
ये और बात है कि नजर से दूर रहते हो तुम।
कितना अजीब है ये फलसफा ज़िन्दगी का,
दूरियाँ बताती हैं नजदीकियों की कीमत।
हमसे दूर होकर हमारे पास हो तुम,
हमारी सूनी ज़िन्दगी की आस हो तुम,
कौन कहता है हमसे बिछड़ गए हो तुम,
हमारी यादों में हमारे साथ हो तुम।
तेरे लिए खुद को मजबूर कर लिया,
ज़ख्मों को हमने अपने नासूर कर लिया,
मेरे दिल में क्या था ये जाने बिना,
तू ने खुद को हमसे कितना दूर कर लिया।
वो जो हमारे लिए कुछ ख़ास होते हैं,
जिनके लिए दिल में एहसास होते हैं,
चाहे वक़्त कितना भी दूर कर दे उन्हें,
दूर रह के भी वो दिल के पास होते हैं।
दूरियाँ बहुत हैं पर इतना समझ लो,
पास रहकर कोई रिश्ता ख़ास नहीं होता,
तुम मेरे दिल के इतने करीब हो कि,
मुझे दूरिओं का एहसास नहीं होता।
मिलना इत्तेफाक था बिछड़ना नसीब था,
वो उतना ही दूर चला गया जितना करीब था,
हम उसको देखने के लिए तरसते रहे,
जिस शख्स की हथेली पे हमारा नसीब था।
दूरिओं से रिश्तों में फर्क नहीं पड़ता,
बात तो दिल की नजदीकियों की होती है,
पास रहने से भी रिश्ते नहीं बन पाते,
वरना मुलाकात तो रोज कितनों से होती है।
कभी हम मिले तो भी क्या मिले
वही दूरियाँ वही फ़ासले,
न कभी हमारे कदम बढ़े
न कभी तुम्हारी झिझक गई।
गलतियों से जुदा तू भी नहीं और मैं भी नहीं,
दोनों इंसान हैं ख़ुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं,
गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं।
तुमसे दूरी का एहसास जब सताने लगा,
तेरे साथ गुजारा हर लम्हा याद आने लगा,
जब भी कोशिश की तुझे भुलाने की,
तू और भी इस दिल के करीब आने लगा।
बात कह दी जाए जुबां से जरूरी तो नहीं,
जिंदगी गुजरी है आधी पूरी तो नहीं,
समझेंगे वो निगाहों से मेरे दिल की दास्ताँ,
दूर बैठे हैं दिलों में दूरी तो नहीं?
दूरी ऐसी कि मिटती ही नहीं,
मैं तेरे पास भी आऊँ तो कहाँ तक आऊँ।
पास रहने से भी कम नहीं होता,
फासला जो दिलों में होता है।
वो मुझसे दूर रहकर खुश है,
और मैं उसे खुश देखने के लिए दूर हूँ।
न जाने करीब आना किसे कहते है,
मुझे तो आपसे दूर जाना ही नहीं आता।।
वो मेरा है तो वो मुझसे दूर क्यों है?
दूर रहकर जीने को हम मजबूर क्यों हैं?
गुनाह हम दोनो ने किया था एक जैसा,
तो मेरा कसूर क्यों है और वो बे कसूर क्यों है?
तमाम उम्र अपनी ज़िन्दगी से दूर रहे,
तेरी ख़ुशी के लिए तुझसे दूर रहे,
अब इससे बढ़कर वफ़ा की सज़ा क्या होगी,
कि तेरे होकर भी तुझसे दूर रहे।
मेरी ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत होती,
अगर तेरी चाहत अधूरी न होती,
कुछ उलझनें कुछ मजबूरियाँ होती बेशक,
मगर प्यार में इतनी दूरी न होती।
दूरी ऐसी है कि मिटती ही नहीं है,
मैं तेरे पास भी आऊँ तो कहाँ तक आऊँ।
तू मुझसे दूरियां बढ़ाने का शौक पूरा कर ले,
मेरी भी ज़िद है तुझे हर दुआ में माँगने की।
करीब आने की उन्हें फुरसत ही नहीं,
और मुझपे इल्ज़ाम लगा है दूरी बनाने का।