“Discover the allure of the night through poetic verses at our event – 100+ Shabnami Raatein Shayari. Join us for an evening of enchantment as poets weave emotions and dreams into words, celebrating the moonlit hours in all their splendor. Immerse yourself in the world of nocturnal beauty and introspection as we explore the magic of moonlit nights through the art of Shayari. Come, be a part of this poetic journey under the starry skies at 100+ Shabnami Raatein Shayari.”
Shabnami Raatein Shayari
रात की चादर में लिपटी है ये शाम,
ख्वाबों की दुनिया में खो जाने का आलम।
चाँदनी रातों में छाया है रूह का सफर,
खुद से खोकर दूसरों की कहानियों में।
खामोश रातों में छुपी हैं अनगिनत बातें,
जिनकी धडकनों में बसी है बेहद यादें।
चाँद की चाँदनी से रोशन होती ये रातें,
शब का हर पल है ख़ास, बिना किसी साथ के।
खोये ख्वाबों की ख़ातिर तरसती ये रातें,
जब आसमान और भी बेहद प्यारी लगती है।
बाग़ की सुन्दरता में लुटाती ये रातें,
जब हर एक चमकते हुए तारा ख्वाब बन जाता है।
सितारों की चमक से सजती ये रातें,
जैसे आसमान भी हमारी बातों को सुनता है।
ये रातों की ख़ासीयत है अनमोल,
जब दिल की बातें होती हैं खास और ख़ास।
मिरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न देl
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्म-ओ-जाँ के मज़ार पर
न दिए जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
मैं ग़ज़ल की शबनमी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूँ
मिरी सल्तनत मिरा फ़न रहे मुझे ताज-ओ-तख़्त ख़ुदा न दे
मैं ग़ज़ल की शबनमी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूँ
मिरी सल्तनत मिरा फ़न रहे मुझे ताज-ओ-तख़्त ख़ुदा न दे
मैं ग़ज़ल की शबनमी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूँ
मिरी सल्तनत मिरा फ़न रहे मुझे ताज-ओ-तख़्त ख़ुदा न दे
शबनमी सुब्ह में माहौल को महकाते हैं
ग़ुंचा-ओ-गुल की तरह हैं ये निखरते आँसू
शबनमी में धूप की जैसे वतन का ख़्वाब था
लोग ये समझे मैं सब्ज़े पर पड़ा सोता रहा
वो हम हैं अहल-ए-मोहब्बत कि जान से दिल से
बहुत बुख़ार उठे आँख शबनमी न हुई
नर्म सब्ज़े पे ज़रा झुक के चले
शबनमी रात का आँचल हो जाए
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता’लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक
आप करते हैं शबनमी बातें
और मिरी प्यास रेग-ज़ारी है
वो अब्र शबनमी था कि नहला गया वजूद
मैं ख़्वाब देखता हुआ अल्फ़ाज़ से उठा
नीलगूँ शबनमी कपड़ों में बदन की ये जोत
जैसे छनती हो सितारों की किरन क्या कहना
शबनमी घास घने फूल लरज़ती किरनें
कौन आया है ख़ज़ानों को लुटाने वाला
शबनमी आँखों के जुगनू काँपते होंटों के फूल
एक लम्हा था जो ‘अमजद’ आज तक गुज़रा नहीं
मैं अक्सर सोचता हूँ फूल कब तक
शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम न होंगे
शबनमी चेहरा छुपाऊँ कैसे बच्चों से ‘फहीम’
शाम आती ही नहीं घर में तहारत के बग़ैर
तुम्हें जो मेरे ग़म-ए-दिल से आगही हो जाए
जिगर में फूल खिलें आँख शबनमी हो जाए
शबनमी रात के अँधेरे को
बरहना जिस्म की क़बा कर दो
हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
शबनम कभी शो’ला कभी तूफ़ान हैं आँखें
सहर जब हुई तो बहुत ख़ामुशी थी ज़मीं शबनमी थी
कभी ख़ाक-ए-दिल में था कोई शरारा बहुत याद आया