Venture into a world of desires and dreams with our captivating collection of 100+ Aarzoo Shayari. These verses weave intricate tales of longing and aspirations, resonating with the yearnings of the heart. Each Shayari unravels the essence of human emotions, capturing the beauty of hopes and the ache of unfulfilled wishes. Whether it’s the yearning for a lost love or the pursuit of distant dreams, these poetic expressions mirror the universal desire for something beyond reach. The rhythmic cadence of words takes readers on an emotional odyssey, navigating the delicate balance between despair and optimism. Through the canvas of Aarzoo Shayari, the human spirit finds solace and understanding, celebrating the relentless pursuit of desires that define our very existence.
Aarzoo Shayari
न खुशी की तलाश है
न गम-ए-निजात की आरजू,
मैं खुद से भी नाराज़ हूँ
तेरी नाराजगी के बाद।.
ख्वाइश बस इतनी सी है कि,
तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो,
आरज़ू ये नही की लोग,
वाह वाह करें..
आरजू बस इतनी सी है,
जो चाहत थी बो बस एक,
बार फिर से मिले यही बस,
एक आरजू दिल में बसी है…
इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न सीकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है..!.
आरज़ू वस्ल की रखती है,
परेशाँ क्या क्या,
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है,
अरमाँ क्या क्या. अख़्तर शीरानी.
दिल में हर किसी का अरमान नहीं होता
हर कोई दिल का मेहमान नहीं होता,
एक बार जिसकी आरजू दिल में बस जाती है,
उसे भुला देना इतना आसान नहीं होता…
ना खुशी की तलाश है,
ना गम-ए-निजात की आरज़ू,
मै ख़ुद से ही नाराज हूँ,
तेरी नाराजगी के बाद..
आज तक दिल की आरज़ू है वही
फूल मुरझा गया है बू है वही..
जलाल मानकपुरी.
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं.
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को,
याद वही आते है जो उड़ जाते है…
तुझे पाने की आरज़ू में तुझे गंवाता रहा हूँ,
रुस्वा तेरे प्यार में होता रहा हूँ,
मुझसे ना पूछ तू मेरे दिल का हाल,
तेरी जुदाई में रोज़ रोता रहा हूँ।.
ये ज़िन्दगी तेरे साथ हो,
ये आरज़ु दिन रात हो,
मैं तेरे संग संग चलूँ,
तू हर सफर में मेरे साथ हो..
एक आरज़ू सी दिल में अक्सर छुपाये फिरता
हूँ,
प्यार करता हूँ तुझसे पर कहने से डरता हूँ,
कही नाराज़ न हो जाओ मेरी
गुस्ताखी से तुम,
इसलिए खामोश रहके भी तेरी
धडकनों को सुना करता हूँ …!.
ज़माने भर की निगाहों में
जो खुदा सा लगे,
वो अजनवी है मगर
मुझको आशना सा लगे,
न जाने कब मेरी
दुनिया में मुस्करायेगा,
वो शख्स जो खाबों
में भी अपना सा लगे।.
कुछ आग आरज़ू की ,उ
म्मीद का धुआँ कुछ
हाँ राख ही तो ठहरा ,
अंजाम जिंदगी का.
मेरे दिल में न आओ बरना डूब जाओगे तुम,
गम के आँशुओं का समंदर है मेरे अन्दर।.
आरजू थी की,
तेरी बाँहो मे दम निकले
लेकिन बेवफा तुम नही,
बदनसीब हम निकले..
आँखो की चमक पलकों की शान हो तुम..
चेहरे की हँसी लबों की मुस्कान हो तुम…..!!
धड़कता है दिल बस तुम्हारी आरज़ू मे…
फिर कैसे ना कहूँ मेरी जान हो तुम..!!.
दिल की आरज़ू तो बस यही है मेरे सनम,
तेरे दिल में हम रहे मेरे दिल में तुम,
तेरा हाथ हाथ में लेकर चलते रहे यूँही,
ये जिंदगी भी तेरे साथ जीने को पड़े कम।.
मेरे दिल में न आओ,
बरना डूब जाओगे तुम
गम के आँसुओं का,
समंदर है मेरे अन्दर..
मुददत से थी किसी से मिलने की
आरज़ू खुवाइश ए दिदार में सब कुछ भुला दिया ,,,
किसी ने दी खबर वो आएंगे रात को
इतना किया उजाला अपना घर तक जला दिया.
मेरे जीने की ये आरजू तेरे आने की दुआ करे
कुछ इस तरह से दर्द भी तेरे सीने में हुआ
करे।.
उलझी सी ज़िन्दगी को सवारने की
आरजू में बैठे हैं,
कोई अपना दिख जाए
शायद उसे पुकारने को बैठे है..
हर जज्बात को जुबान नहीं मिलती..
हर आरजू को दुआ नहीं मिलती..
मुस्कान बनाये रखो तो साथ है दुनिया..
वर्ना आंसुओ को तो आंखो मे भी पनाह नहीं मिलती….
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे
दिल भी समझता हो हक़ीर,
आरज़ू वो है जो सीने में रहे
नाज़ के साथ.
अकबर इलाहाबादी.
आज ..खुद को तुझमे डुबोने की आरज़ू है।
क़यामत तक सिर्फ तेरा होने की आरज़ू है।
किसने कहा गले से लगा ले मुझको, मग़र
तेरी गोद में सर रखकर सोने की आरज़ू है।.
इक वक़्त था कि,
दिल को सुकूँ की तलाश थी,
और अब ये आरज़ू है कि,
दर्द-ए-निहाँ रहे..
जीने की आरज़ू है,
तो जी चट्टानों की तरह,
वरना पत्तों की तरह,
तुझको हवा ले जायेगी…
कभी कभी सोचता हूँ,
आखिर यहाँ कौन जीत गया,
मेरी आरज़ू उसकी ज़िद या,
फिर मोहब्बत?.
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते…
मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती..
मिर्ज़ा ग़ालिब.
तमन्ना है मेरी कि आपकी आरज़ू बन जाऊं
आपकी आँख का तारा ना सही
आपकी आँख का आंसू बन जाऊं.
आरजू इश्क़ मोहब्बत,
इसमे कभी आना नहीं,
जीना है अगर शान से तो,
किसी से दिल लगाना नहीं..l
जब कोई नौजवान मरता है,
आरज़ू का जहान मरता है..
फ़ारूक़ नाज़की.
दिल की आरज़ू थी कोई दिल रूवा मिले,
हकीकत न सही पर सपनों में ही मिलें…
काश की मुझे मोहोब्बत ना होती काश की मुझे तेरी
आरज़ू ना होती जी लेते यू ही ज़िंदगी को
हम तेरे बिन काश की ये तड़प हमे ना होती..
तुम आरजू तो करो मोहब्बत करने की,
हम इतने भी गरीब नहीं की मोहब्बत ना दे सके…
थाम लेना हाथ मेरा कभी पीछे जो छूट जाऊँ
मना लेना मुझे जो कभी तुमसे रूठ जाऊँ
मैं पागल ही सही मगर मैं वो हूँ
जो तेरी हर आरजू के लिये टूट जाऊँ ll.
आरज़ू‘ तेरी बरक़रार रहे ………….
दिल का क्या है रहे, रहे न रहे…..
आरजू थी तुम्हारी तलब बनने की,
मलाल ये है कि तुम्हारी लत लग गयी…
खोई हुई आँखो में सपना सज़ा लिया।।
आरज़ू में आपकी चाहत को बसा लिया।।
धड़कन भी ना रही ज़रूरी हमारे लिए।।
जब से दिल में हमने आपको बसा लिया।।.
एक पत्थर की आरजू करके ,
खुदको ज़ख्मी बना लिया मैंने…..
आरज़ू तेरी बरक़रार रहे,
दिल का क्या है रहे, न रहे..
आज खुद को तुझमे डुबोने की आरज़ू है,
क़यामत तक सिर्फ तेरा होने की आरज़ू है,
किसने कहा गले से लगा ले मुझको, मग़र
तेरी गोद में सर रखकर सोने की आरज़ू है…
आरज़ू ये नहीं कि ग़म का तूफ़ान टल जाये,
फ़िक्र तो ये है कि कहीं आपका दिल न बदल जाये.
कभी मुझको अगर भुलाना चाहो तो,
दर्द इतना देना कि मेरा दम ही निकल जाये…!.
ज़िन्दगी की आखरी आरजू बस यही हैं,
तू सलामत रहें दुआँ बस यही हैं…
उमरे दराज लाये थे, मांग के चार दिन,
दो आरजू में कट गए, दो इन्तेजार में..
खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़,
ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है..
शकील बदायुनी.