Zakir Khan, the renowned Indian stand-up comedian and poet, has enchanted audiences with his unique blend of humor and heartfelt Shayaris in Hindi. His Shayaris reflect the essence of life, love, heartbreak, and everyday emotions in a relatable and humorous manner. From sharing witty observations on relationships to touching upon the intricacies of human emotions, Zakir Khan’s Shayaris strike a chord with people from all walks of life. Through his performances and social media presence, Zakir has created a massive fan following who admire his poetic talent and comedic brilliance. His Shayaris are not just words; they are a reflection of the human experience, encapsulated in a language that resonates with the masses. Whether it’s in his comedy shows, interviews, or written posts, Zakir’s Shayaris have left an indelible mark on the hearts of his audience, making him one of the most beloved and sought-after performers in the country. If you’re a fan of heartfelt Shayaris with a touch of humor, Zakir Khan’s verses are sure to leave you smiling and pondering the deeper aspects of life.
Zakir Khan Shayari
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
इंतकाम सारे पूरे किए, पर इश्क अधूरा रहने दिया।
बता देना सबको की, में मतलबी बड़ा था।
हर बड़े मुकाम पे तन्हा ही मैं खड़ा था।
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई।
मेरी अपनी और उसकी आरज़ू में फर्क ये था
मुझे बस वो…
और उसे सारा जमाना चाहिए था।
मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा ज़िक्र ही कहां था , मेरी दास्तान से पहले।
गर यकीन ना हों तो बिछड़ कर देख लो
तुम मिलोगे सबसे मगर हमारी ही तलाश में।
इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी सी फर्माइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफसील से मिलने की ख्वाइश है ।
ये तो परिंदों की मासूमियत है,
वरना दूसरों के घर अब आता जाता कौन हैं।
तुम भी कमाल करते हों ,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो।
बड़ी कश्मकश में है ये जिंदगी की,
तेरा मिलना मिलना इश्क़ था या फरेब।
दिलों की बात करता है ज़माना,
पर आज भी मोहब्बत
चेहरे से ही शुरू होती हैं।
बे वजह बेवफाओं को याद किया है,
ग़लत लोगों पे बहुत वक़्त बर्बाद किया है।
माना कि तुम को भी इश्क़ का तजुर्बा काम नहीं,
हमनें भी तो बगों में हैं कई तितलियां उड़ाई।
माना की तुमको इश्क़ का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग़ में हैं कई तितलियाँ उड़ाई..
कामयाबी हमने तेरे लिए खुद को यूँ तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया..
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी से फरमाइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफ्सील से मलने क ख्वाइश है..
बस का इंतज़ार करते हुए,
मेट्रो में खड़े खड़े
रिक्शा में बैठे हुए
गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो?
गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो?
क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी?
घर नहीं जा पाए न इस बार भी?
हम दोनों में बस इतना सा फर्क है,
उसके सब “लेकिन” मेरे नाम से शुरू होते है
और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते है..।
उसे मैं क्या, मेरा खुमार भी मिले तो बेरहमी से तोड़ देती है,
वो ख्वाब में आती है मेरे, फिर आकर मुझे छोड़ देती है….।
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्ने पर,
आप उसे किताबो में डालकर मुश्किल न कीजिये..।
अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ…
एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…।
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।