100+ Kumar Vishwas Shayari in Hindi

Kumar Vishwas, a renowned Indian poet, and politician, has captivated audiences with his soul-stirring shayari. His verses encompass love, life, and patriotism, resonating with people of all ages. With over a hundred plus shayaris, Vishwas weaves emotions into words, touching hearts and leaving an indelible mark. His eloquence, wit, and depth of thought have made him a cherished figure among poetry enthusiasts. Whether performing on stage or through his published works, Kumar Vishwas continues to inspire and connect with millions, making him a true maestro of poetic expression.

Kumar Vishwas Shayari

मेरा जो भी तर्जुबा है, तुम्हे बतला रहा हूँ मैं

कोई लब छु गया था तब, की अब तक गा रहा हूँ मैं

बिछुड़ के तुम से अब कैसे, जिया जाये बिना तडपे

जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हु मैं

मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,

कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,

यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,

जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा

हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा

अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का

मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ

किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ

मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो

मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ

ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है

ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है

अजब सी कशमकश है,रोज़ जीने, रोज़ मरने में

मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है

पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना

जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना

मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है

जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना।

वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है

वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है

किसी  से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से

यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है।

तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,

कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता,

कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से,

मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता।

मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा

मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा

हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा

अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा।।

मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है

भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करती है

यकीं है सारी दुनिया को, खफा है हमसे वो लेकिन

मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है

हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है

खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है

किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का

जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है

कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है

लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है

जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है

तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है

एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है

तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे

ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का

और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे

सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा? 
तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा, 
भींग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत सी, 
इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना, 
मर जाऊँगा!

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते

मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते

जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो

जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते.

उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे

वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे

मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा

ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे

वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है

वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है

किसी  से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से

यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है.

कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए

ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाऐ

मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले

मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाऐ

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ

तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ

तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन

तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ

तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न

दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है

तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे

कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है

दिल तो करता है ख़ैर करता है आप का ज़िक्र 
ग़ैर करता है क्यूँ न मैं दिल से दूँ दुआ उस को 
जबकि वो मुझ से बैर करता है आप तो हू-ब-हू वही हैं 
जो मेरे सपनों में सैर करता है इश्क़ क्यूँ आप से 
ये दिल मेरा मुझ से पूछे बग़ैर करता है 
एक ज़र्रा दुआएँ माँ की ले आसमानों की सैर करता है

तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है

हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है

अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़

तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है

हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है

नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है

तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ

समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते

मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते

जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो

जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते

ना पाने की खुशी है कुछ,ना खोने का ही कुछ गम है…

ये दौलत और शौहरत सिर्फ कुछ जख्मों का मरहम है…

अजब सी कशमकश है रोज जीने ,रोज मरने में…

मुक्कमल जिंदगी तो है,मगर पूरी से कुछ कम है…”

गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है,

हर एक पल मुस्कुराकर अश्क पीना और मुश्किल है,

हमारी बदनसीबी ने हमें बस इतना सिखाया है,

किसी के इश्क़ में मरने से जीना और मुश्किल है.

उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती 
हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती 
शाएरी को नज़र नहीं मिलती 
मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती 
रूह में दिल में जिस्म में दुनिया ढूँढता हूँ 
मगर नहीं मिलती 
लोग कहते हैं रूह बिकती है 
मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती||

तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता

कई जन्मो से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता..

कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत हे ज़माने से

मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता..

मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया

अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया

तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है

मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं

कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं

बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे

जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं..

नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है

मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है

कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों

सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है

मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है

मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है

सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से

मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है

सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है

भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है

बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा

जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है

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